शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

अक्षर-प्रेम

तुम इश्क़ की गहराईयों का माप क्यों पूछते हो मुझसे 
मुझे खबर नहीं अब धरातल की स्थिति क्या है । 
मैं डूब गया हूँ और ऐसे कुछ ठहर गया हूँ वक़्त में 
सपनों और हक़ीक़त में रहा अब फर्क कहाँ  है। 

खुदा से मांगूं अब क्या, जो तेरा साथ लिखा लकीरों में,
मुझको नहीं फ़िकर , क्या आएगा हमारी तकदीरों में । 
मोहब्बत  में नशा भी खूब है, और है खूब  साथ होश का भी 
तू है साहिल मेरा, मेरी कश्ती भी, किनारा भी। 

साँसों का संगीत मुझको अब समझ आता है थोड़ा थोड़ा,
धड़कनों की साज तुम, साकी तुम ही मेरी, तुम ही हो हाला!
मैं तुम में ढलना  चाहूँ जैसे सूर्य उतरे क्षितिज में  सायं -वेला  
बस जाओ तुम मुझमें ऐसे, रोशन  होती शब जैसे पहन प्रकाश का चोला ।  

आलोकित  हो तुझसे मैं जीवन के नए आयाम तरूँगा 
मेरे ठहराव में मैं, प्रेम लहरों का सृजन करूँगा । 
तेरा हूँ, तेरा हूँ और तेरा ही हूँ मैं अनंत की सीमाओं तक 
तुझमे रहूंगा, तेरा घर बनूंगा, मोहब्बत-इबादत दिन-रात करूंगा!

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