गुरुवार, 27 नवंबर 2014

क्या लिखूं

दिल में आया प्रेम-पत्र लिख बैठें उनको और फिर …


मैं सोचता हूँ क्या लिखूं?
दिल के अपने अरमान लिखूं,
मोहब्बत की दो बात लिखूं 
या अपनी प्रेम-हाला के कुछ जाम लिखूं!

इस सीमित से कागज के टुकड़े पर 
कैसे मैं प्रेम-पुराण लिखूं?
मोहब्बत के गहरे सागर की 
कैसे बस बूँद प्रमाण लिखूं!

सोचता हूँ तेरे बारे में लिखूं,
पर, रूप लिखूं या दिल लिखूं?
भोलेपन की किताब लिखूं,
या मृगनयनों की बात लिखूं?

चलो अपनी ही कुछ कह जाता हुँ. 
पर, रूह की तलाश लिखूं,
जुदाई में नयनों का प्रलाप लिखूं?
साँसों में निहित तेरी प्यारी आवाज लिखूं ,
या बंद आँखों में मुस्कुराते 
तेरे होठों का आकार लिखूं?

सोचता हूँ यहां मौसम का हाल लिखूं,
सर्द अकेले कम्बल की दास्तान  लिखूं,
मेरे हाथों में तेरे हाथों के एहसास लिखूं,
और लकीरों के दोराहे का एकाकार हुआ अंजाम लिखूं!

इस सीमित से कागज के टुकड़े पर,
कैसे खामोश रातों की आवाज लिखूं?
दूरी दिल में तीर सी चुभती है,
तेरी ओर रूह की मैं परवाज लिखूं!

इस सीमित से कागज़ के टुकड़े पर 
कैसे मैं प्रीत-पुराण लिखूं,
कैसे दिल की आवाज लिखूं,
ऐे मेरे खुद बस इतना बता,
कैसे मेरी तेरी इबादत बयान  लिखूं?

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

अक्षर-प्रेम

तुम इश्क़ की गहराईयों का माप क्यों पूछते हो मुझसे 
मुझे खबर नहीं अब धरातल की स्थिति क्या है । 
मैं डूब गया हूँ और ऐसे कुछ ठहर गया हूँ वक़्त में 
सपनों और हक़ीक़त में रहा अब फर्क कहाँ  है। 

खुदा से मांगूं अब क्या, जो तेरा साथ लिखा लकीरों में,
मुझको नहीं फ़िकर , क्या आएगा हमारी तकदीरों में । 
मोहब्बत  में नशा भी खूब है, और है खूब  साथ होश का भी 
तू है साहिल मेरा, मेरी कश्ती भी, किनारा भी। 

साँसों का संगीत मुझको अब समझ आता है थोड़ा थोड़ा,
धड़कनों की साज तुम, साकी तुम ही मेरी, तुम ही हो हाला!
मैं तुम में ढलना  चाहूँ जैसे सूर्य उतरे क्षितिज में  सायं -वेला  
बस जाओ तुम मुझमें ऐसे, रोशन  होती शब जैसे पहन प्रकाश का चोला ।  

आलोकित  हो तुझसे मैं जीवन के नए आयाम तरूँगा 
मेरे ठहराव में मैं, प्रेम लहरों का सृजन करूँगा । 
तेरा हूँ, तेरा हूँ और तेरा ही हूँ मैं अनंत की सीमाओं तक 
तुझमे रहूंगा, तेरा घर बनूंगा, मोहब्बत-इबादत दिन-रात करूंगा!