गुरुवार, 10 नवंबर 2011

बस यूँ ही बैठे-बैठे

 

मोहब्बत भी देखो कैसे-कैसे अल्फाज कहती है,

बेबाक अदाएं कुछ दिल के सारे हाल कहती हैं,

कितनी बार समझाया नादान यादों को, थोड़ा पर्दा करो , 

जिद्दी हर बार भीड़ में लबों पर आ शर्मसार करती हैं। 

रविवार, 4 सितंबर 2011

मेरी चाहत का आईना


मैं तेरी अकेली  रातोँ  का 
एक चाँद बन जाना चाहता हूँ ,
तेरे दिल में अपनी एक 
मैं तस्वीर सजाना चाहता हूँ,
हैं अरमान  तेरे  जिस  मोहब्बत  के  
 मैं तुझसे  वो  हरबार  जताना  चाहता  हूँ ,
मैं तुझको  अपनी  मोहब्बत  का 
हर  साज  सुनाना  चाहता  हूँ |
तेरी  आँखों  की  अनकही  को 
मै  आवाज  बनाना  चाहता  हूँ ,
तेरे  पलकोँ  से  मैं  अपनी 
जीवन  की  धुन  बजाना  चाहता  हूँ ,
रेगिस्तान  से  इस  मन  में  मेरे 
मैं  एक  फूल खिलाना  चाहता  हूँ ,
मैं  तेरे  जीवन  से  अब  हर  गम 
की  परछाई  मिटाना  चाहता  हूँ |

झुकती  तुम  किसी  खुदा  के  दर  पर 
तुझको  अपना  भगवान्  बनाना  चाहता  हूँ ,
तेरी  खातिर  इस  जमाने  से  मैं 
सजदे के  अंदाज  चुराना  चाहता  हूँ ,
तेरे  जीवन  के क्षितिज   पर  मैं  खुशियोँ
का  एक  चाँद  उगाना  चाहता  हूँ ,
मैं  तुझको  अब  ऐ  जीवन  मेरे 
काल  के  पार  ले जाना  चाहता हूँ |
बन्धनोँ से  रख  मुक्त  तुम्हें  मैं 
आजादी  की  नई  उड़ान  भरवाना  चाहता  हूँ ,
तेरे  हर  आगाज  से  मैं 
इच्छित  अंजाम  मिलाना  चाहता  हूँ ,
तुझको  मैं  खुशियोँ  की  एक 
आवाज  बनाना  चाहता  हूँ ,
तेरे  ख्वाबोँ  को  मै  हमारी  दुनिया  में 
हकीक़त  की  पोशाक  पहनाना   चाहता  हूँ |


है  उठती  पुकार  मेरे  भी  मन  में 
इस  हिज्र  का  मैं  सर्वस्व  मिटाना  चाहता  हूँ ,
जमाने  कुछ  दस्तूर  दिखाए  हमने 
मैं  दुनिया  को  नए  संस्कार  सिखाना  चाहता  हूँ ,
फरेबी  दुनिया  के  रस्मोँ  से  मैं 
एक  नया  कुरुक्षेत्र  लड़ जाना  चाहता हूँ ,
तुझको  अपनी  मधुशाला  का मैं  
हर जाम  पिलाना  चाहता  हूँ |
भव मौजोँ पर  बहती  जीवन  कश्ती  मेरी 
तुझको  साहिल  हर  बार  बनाना  चाहता  हूँ ,
एक  जन्म  हो  दो  जन्म  होँ, मैं  हमारे  "हम "  को 
जन्म सीमाओं  से  पार  ले  जाना चाहता  हूँ ,
मैं  अपनी  जीवन  पुस्तक  का  तुझसे 
हर  अध्याय लिखवाना  चाहता  हूँ ,
अधूरे  कुछ  अरमानोँ का  मैं  तुझको 
एक  विस्तार  बनाना  चाहता  हूँ |


तुझसे  किये  हर  वादे  को  निभाने  खातिर  
मैं  नया  भीष्म  बन  जाना  चाहता  हूँ ,
मैं  उछ्रिंक्ल अपनी  प्रीत  का 
तुझे  एक  अनुशासित मीत बनाना  चाहता  हूँ ,
है  चिंगारी ,तुझमें भी ,मुझमें भी 
मोहब्बत की  इनसे  मैं एक  लपट  जलाना  चाहता  हूँ ,
दिक्  और  काल  से  परे  होकर मैं प्रेम  के  
अक्षर  एहसास  जी  जाना  चाहता  हूँ |
तेरे  ख्वाबों  को  मैं  अपने  जीवन 
का  मुकाम  बनाना  चाहता  हूँ ,
अपने  आधे  तन  में  मैं तुझको 
रीतिपुर्व समाना चाहता  हूँ ,
संग  तेरे  मिल  मै  सृजन  की 
एक  धुन  बजाना  चाहता  हूँ ,
मेरे  हर  ख्वाब  एहसास  मेरी  सोच  मेरे  अस्तित्व  के  मालिक 
मैं  तेरी  छाँव  में  जीवन की  हर  धूप  भुलाना  चाहता  हूँ |

शुक्रवार, 27 मई 2011

कभी कभी हवा के झोंकों के संग ... आ जाती है याद मीठी मुस्कान तुम्हारी ... कभी कभी यूँ ही बैठे अकेली रातों में ... आ जाती है मेरे होठों पर मुस्कान तुम्हारी ... मजबूर कुछ हम , कुछ बेबस तुम भी दुनिया की दीवारों से ... पर बंदिशों की बुलंदियां हटा उन्मुक्त बहती हो तुम साँसों में हमारी

शनिवार, 30 अप्रैल 2011


kyun lga baithe ho bandish unmukht sanso par hamari,
har pal hanste rehte yandon me tumhari,
phir dil se jane kab koi aah nikal aati hai,
nhi ho kismat mein hamari yeh yaad dila jati hai,
tum hi baithe ho ban lhu rago mein hamari,
sapne v hami aati hain wahi jo hasratein hain tumhari,
phir jane kab koi tisnagi dil mein utar jati hai,
aur tere sangdil hone ka ehsas dila jati hai
dekhti rah jati hain yeh majboor aankhe hamari,
kya mil payegi hme ek adad
sohbt bhi tumhari???
fir jane kab dil se uthta dhaun ruh ko dhanka deta hai,
aur ek bar fir ye nadan abujh schchai se muh mod leta hai.............