शुक्रवार, 27 मई 2011

कभी कभी हवा के झोंकों के संग ... आ जाती है याद मीठी मुस्कान तुम्हारी ... कभी कभी यूँ ही बैठे अकेली रातों में ... आ जाती है मेरे होठों पर मुस्कान तुम्हारी ... मजबूर कुछ हम , कुछ बेबस तुम भी दुनिया की दीवारों से ... पर बंदिशों की बुलंदियां हटा उन्मुक्त बहती हो तुम साँसों में हमारी