शनिवार, 16 जून 2012

परिभाषा मेरे अस्तित्व की

                                 परिभाषा मेरे अस्तित्व की 
आ जाओ न यादों से निकल फिर , कि बीती  शब के धागे फिर महफ़िल बुनें ।
तुम्हारा ख्याल महज तरसते अरमानों की दास्ताँ नहीं , आँखों की निरपेक्ष हकीक़त चूमे ।
कि काल का दरिया अनवरत बहता तो है, पर आओ न अपनी यादों की तरह,
जिनमें डूब, मैं जी लेता एक ब्रह्माण्ड की उम्र, और वक़्त का सौदागर , ठगा सा,
मुंह  ले रह जाता है, क़ि नुक्सान हो गया उसे व्यापार में,
बिना कोई वक़्त खरीदे, मैं इतने ख्वाब जो जी आया इस जहान में।
चली आओ तुम इस बार इस गुलशन में , तुम्हें संग देख अपने ,
प्रायिकता की दुनियाओं को सारी समेट लूँ, और रच पाऊं
अपनी दुनिया तुम्हारे साथ और नितांत काल को विलीन हो जाऊं तुझमें ।।
द्रष्टा और स्रष्टा में  भला कोई भेद भी होता है?
 जब परिभाषित ही हूँ तुझसे तो , पृथक अस्तित्व ही नहीं वास्तव,छलावा है जेहन का;
भौतिकी के नियम नहीं बतलाते दो कृष्ण-छिद्र आपस में क्या खेल खेलते होंगें।।