गुरुवार, 23 सितंबर 2010

जरा अपनी नजरें

 जरा अपनी नजरें जो तुम  मोड़ लेते
हमारी तन्हाइयों का शहर देख लेते,
जो दिख गयी तुम्हें बेवफाई थी मेरी
उसमे छिपी मोहब्बत की गजल देख लेते
जरा अपनी..........................


हर पल, हर तिनके से, तेरी खूशबू मिल जाती है
तुझसे निकली सांसें ही तो मेरी धड़कनें चलती हैं,
तेरी हसरत छुपाती निगाहों को जो तुम पढ़ लेते
सिसकिया छुपाते लबों को ही सुन लेते
जरा अपनी ...........................


क्यों आये हम जीवन में तुम्हारे,
क्यों उतर गए अनजाने ही मन में तुम्हारे
हमारी हंसी जो न तुम हंस लेते
तो मुझमे न अक्स अपना खुद देख लेते
हमने भी तो तुम्ही बसाया है मन में
सदा के लिए ही उतारा है जीवन में
हमारी इबादत जो तुम देख लेते
तो मुझसे न अपनी नजर फेर लेते
जरा अपनी नजरें ........................

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

तेरी यादों में डूबा था हर पल ,
आज भी तेरी सोच में वक्त गुजर रहा है!
मुस्कुराहटों से भरा,जेहन में बसा है वो हसीं कल,
पर देखो मुझ पर मेरा आज हंस रहा है!
तेरा दामन दिलाया था जिन लकीरों ने मुझे,
आज उन्ही में एक टूटे सपने का अक्स उभर रहा है!
कल मोहब्बत की जिस  दहलीज पर रखा  था  कदम,
आज वही वापस लौटने का मुकाम लग रहा है!
मोहब्बत की झील पर हर शाम  मिला करते थे,
हाथों में लिए हाथ तेरे संग कभी बहा करते थे
यूँ कपूर सी खुशियाँ खो गयी किस  भंवर में?
जिन लबों से आज  मेरे गम हँसते है, कल उनपर
तेरे अफसाने खिला करते थे!
जो कल मेरी हंसी न तुम हंस लेते
तो यूँ मुझमे खुद को न तुम देख लेते
बेवफाई नहीं , जीवन के  उसूलों से वफा की थी हमने
हमारी इबादत जो तुम देख लेते!
हर पल, दिल जलता है उस बीते पल को बिताने में
उस घडी  काश तुम अपनी नजरें जरा मोड़ लेते!