दिल में आया प्रेम-पत्र लिख बैठें उनको और फिर …
मैं सोचता हूँ क्या लिखूं?
मैं सोचता हूँ क्या लिखूं?
दिल के अपने अरमान लिखूं,
मोहब्बत की दो बात लिखूं
या अपनी प्रेम-हाला के कुछ जाम लिखूं!
इस सीमित से कागज के टुकड़े पर
कैसे मैं प्रेम-पुराण लिखूं?
मोहब्बत के गहरे सागर की
कैसे बस बूँद प्रमाण लिखूं!
सोचता हूँ तेरे बारे में लिखूं,
पर, रूप लिखूं या दिल लिखूं?
भोलेपन की किताब लिखूं,
या मृगनयनों की बात लिखूं?
चलो अपनी ही कुछ कह जाता हुँ.
पर, रूह की तलाश लिखूं,
जुदाई में नयनों का प्रलाप लिखूं?
साँसों में निहित तेरी प्यारी आवाज लिखूं ,
या बंद आँखों में मुस्कुराते
तेरे होठों का आकार लिखूं?
सोचता हूँ यहां मौसम का हाल लिखूं,
सर्द अकेले कम्बल की दास्तान लिखूं,
मेरे हाथों में तेरे हाथों के एहसास लिखूं,
और लकीरों के दोराहे का एकाकार हुआ अंजाम लिखूं!
इस सीमित से कागज के टुकड़े पर,
कैसे खामोश रातों की आवाज लिखूं?
दूरी दिल में तीर सी चुभती है,
तेरी ओर रूह की मैं परवाज लिखूं!
इस सीमित से कागज़ के टुकड़े पर
कैसे मैं प्रीत-पुराण लिखूं,
कैसे दिल की आवाज लिखूं,
ऐे मेरे खुद बस इतना बता,
कैसे मेरी तेरी इबादत बयान लिखूं?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें